कहते हैं हर किसी के जीवन का संघर्ष अलग होता है और उसी संघर्ष के आधार पर उनके जीवन का दर्शन सामने आता है । पर उनका क्या जिनका जीवन ही अलग रहा ? साधना जैन की पहली किताब जुहू चौपाटी ,उनके जीवन संधर्ष में एक जीत का आगाज है । साधना जैन कहती हैं अपने बारे में –
कहते हैं हर किसी के जीवन का संघर्ष अलग होता है और उसी संघर्ष के आधार पर उनके जीवन का दर्शन सामने आता है । पर उनका क्या जिनका जीवन ही अलग रहा ?
साधना जैन की पहली किताब जुहू चौपाटी ,उनके जीवन संधर्ष में एक जीत का आगाज है ।
साधना जैन कहती हैं अपने बारे में –
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” पिछले चालीस सालों से मेरा परिचय इतना ही था, जितना मैंने लोगों से सुना था। सच बताऊं तो मुझे इस बात से कोई फ़र्क भी नहीं पड़ता था। ‘ मैं खुद क्या हूं ‘ जानना मेरे लिए कभी कोई प्रश्न था ही नहीं। कहानियां पढ़ते पढ़ते, मैं कभी भी कुछ भी बन जाती थी। इस किताब को लिख लेने के बाद, अब मुझे खुद को जानने की बैचैनी होने लगी है। मुझे उम्मीद है कि लिखते रहने से, थोड़ा ही सही, मैं खुद को जान लूंगी। अभी के लिए अपने बारे में बस इतना ही कहूंगी कि आप लोगों के जैसे, मैं भी सफ़र में हूं, किसी मंज़िल की तलाश में। ‘ जुहू चौपाटी ‘ तो बस एक शुरुआत है।
वैसे मैं दिल्ली की रहने वाली हूं। दिल्ली यूनिवर्सिटी से मेरी शिक्षा हुई है। बचपन में ही अर्थराइटिस रोग से ग्रस्त होने की वजह से, बाहर जाना बंद हो गया, जिसके कारण मेरी किताबों से करीबी बढ़ती गई। और अब किताबों के साथ ही मेरा ज्यादातर समय व्यतीत होता है।
मेरे लेखन की यात्रा कहां से शुरू हुई, इसका जवाब देना बहुत मुश्किल है। सालों से पढ़ते पढ़ते, कब मेरे मस्तिष्क ने कहानियां बुनना शुरू कर दिया, मुझे पता ही नहीं चला। हां, उन कहानियों को पन्नों पर उतरना पिछले वर्ष से ही शुरू किया। जिनमें से एक ने किताब का रूप लिया और कुछ शॉर्ट स्टोरीज बनकर रह गईं।
मैं सबसे ज्यादा किताबों के किरदारों से प्रेरित होती हूं। क्योंकि अपना सबसे ज्यादा वक्त जो मैं उनके साथ गुजारती हूं। लेकिन अगर मुझसे किसी एक किरदार का नाम बताने को कहा जायेगा तो मैं वो भी नहीं बता पाऊंगी। मुखेबकिसी किरदार में कुछ पसंद आता है तो किसी में कुछ। आप मेरी सोच को उन्हीं सब किरदारों की मिलीजुली कॉकटेल कह सकते हैं।
वैसे ही जैसे एक अच्छा पाठक लिखते लिखते सोचने लगता है। मेरी बीमारी की वजह से मेरी जीवनशैली ही ऐसी बन गई थी कि मैं खुद में ही सिमटती गई। अपने मन की बातों को कहने का सबसे अच्छा माध्यम मुझे किताब लिखना ही लगा। किताबों के माध्यम से मैं काफी हद तक खुद को लोगों से जोड़ सकती हूं।
मेरी किताब का मूल भाव लोगों को सोचने के लिए एक खुराक देना था। हम आज़ाद होते हुए भी कितने आज़ाद होते हैं? पैदा होते ही इंसान रिश्तों के मोह में बंधने लगता है। यहां तक की हमारी आदतें, पसंद, सपने भी हमें खुद से बांधे रखते हैं। मेरी कहानी की किरदार इन सबसे खुद को मुक्त रखते हुए अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ खोती है। अपनी इच्छानुसार ज़िंदगी जीने की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। उसी की जीवन यात्रा की कहानी है, जुहू चौपाटी।
आगे और भी किताबें लिखनी है और बहुत सारा पढ़ना है। अभी मैं ज्यादा तो नहीं सोचती, मगर मुझे कम से कम पांच किताबें तो लिखनी ही हैं।”