संजय मूंदड़ा ने दिया मानवता का परिचय उजागर हो गया कि भक्तों के भगवान ही होते हैं

संजय मूंदड़ा ने दिया मानवता का परिचय

उजागर हो गया कि भक्तों के भगवान ही होते हैं

श्रीगंगानगर. आज यह बात उजागर हो गई कि भक्तों के भगवान ही होते है और भक्त जब मुश्किल में होता है तो स्वयं भी चलकर आते हैं और अपने सभी कपाट खोलकर आते हैं। इस सच्चाई को उजागर किया श्रीगंगानगर की नई धान मंडी के मजदूर आकाश पुत्र भीमसैन धानका ने। आकाश ने बताया कि उसे भगवान के भक्त के रूप में संजय मूंदड़ा और डॉ सोनू गोयल कैसे मिले और उन्होंने उसकी कितनी बड़ी मुसीबत से छुटकारा दिलायाद्ध मुसीबत भी इतनी बड़ी थी कि सोचा भी नहीं जा सकता था कि यह हल भी हो पायेगी।

आकाश ने बताया कि मैं पत्नी सीमा से बहुत प्यार करता हूँ। हम दोनों ने प्रेम विवाह किया है। हमारे पहला बच्चा हरदेश हुआ। उसके बाद बेटी ने जन्म लिया। मैं बड़ा खुश था कि भगवान ने मेरी बहुत सुनी कि पहले मुझे एक बेटा मिल गया और बाद में एक लक्ष्मी स्वरूपा बेटी। पत्नी सीमा रोज प्राप्त: काल उठते ही लक्षिता को उठाती, नहलाती, दुलारती और उसकी सुंदरता को निहारती। इतना ही नहीं लक्षित जब मंद-मंद मुस्कान बिखरेती तो वह खिलखिला उठती। इसके बाद जब मैंने देखा कि सीमा के इतना खिलखिलाने के बाद उसकी आंखों में आंसू क्यों आ जाते हैं और आते भी इतने हैं कि गंगा की तरह बहते हैं। जब यह बात मुझे पता चली कि मेरी बेटी लक्षिता आंखों से देख नहीं सकती। मैं खुद कराह उठा। इतना रोया कि घंटों तक रोता रहा। आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। हे भगवान ये क्या किया? क्यों किया? किस लिए किया? मैंने ऐसा क्या गलत किया था कि जिसकी मुझे इतनी बड़ी सजा दी गई। चंूकि नन्ही बेटी लक्षिता सुंदर है, कोमल है, सुनती है, बोलती है, मंद-मंद मुस्कुराती है, लेकिन उसकी आंखें इस संसार को जब नहीं देख पायेंगी तब एक माँ और बाप की विवशता को समझेगा कौन? आकाश (लक्षिता के पिता) हर समय सोचता रहता कि लक्षिता कब आकाश के बादलों को देख पायेगी्? वह कब सूर्य देव के दर्शन कर पायेगी? वह संसार की रंग-बिरंगी दुनिया का नजारा देख पायेगी? वह देख भी पाएगी या नहीं देख पाएगी? बस इसी सोच मेंं तीन साल बीत गए। कभी मंदिर गए तो मस्जिद। कभी गुरुद्वारा गए तो कभी पीर बाबा के पास। भगवान को हमेशा याद किया और इतना किया कि एक दिन ऐसा भी आया कि भगवान उनके पास खुद ही चलकर आ गए। तब यह बात सिद्ध हुई कि भक्तों के भगवान होते हैं।

भगवान को भक्त भूल सकते हैं, भगवान भक्तों को कभी नहीं भूल सकता। संसार मेंं सबसे कठिन कार्य है तो वह हृदय परिवर्तन यानी किसी स्वभाव को बदलना। अंधे को आंखे देना सहज ही नहीं किंतु किसी को किसी के गुण न दिखते हों तो उसमें सच्ची श्रद्धा व सम्मान करना पैदा करना गूंगे को जुबान देना सहज तो नहीं किंतु उसका सहारा बनने वाला भगवान का बड़ा भक्त ही कहलाता है और भक्त बने गौभक्त एवं भाजपा नेता संजय मूंदड़ा।

इस सारी कहानी के बीच लगभग तीन वर्ष बीत जाने के बाद आकाश अपने मित्र अमित डोडा से मिलता है और उसके समक्ष बच्ची लक्षिता की सारी व्यथा व्यक्त करता है। अमित डोडा भी उस समय भावुक हो जाता है। डोडा जी, भाजपा नेता संजय मूंदड़ा से मिलते हैं क्योंकि मूंदड़ा उनके एक ऐसे मित्र है जो कि सबके दुख में काम आते हैं और बड़ी से बड़ी समस्याओं का हल करने का जोखिम उठाने में कभी भी वे संकोच नहीं करते। शेर-दिलेर दिल हंै। डोडा जी ने जब सारी बात मूंदड़ा जी को बताई और धानक परिवार को उनसे मिलवाया। तब मूंदड़ा के भाव देखने लायक थे. ये गुमसुम हो गए। एकदम सन्नाटा छा गया। आंखें भर आईं। समय मौन हो गया। कुछ ही सैकंडों के बाद मूंदड़ा उठे और अपने साथियों और मित्र मंडली के बीच घोषणा की कि वे लक्षित को आकाश के तारे दिखाएंगे और इस संसार की रंग-बिरंगी दुनिया। इसके लिए उन्हें जितना भी खर्च करना पड़े, करेंगे। श्री मूंदड़ा ने लक्षिता की आंखों के ऑप्रेशन के लिए देश के वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञों की खोज की तो पाया कि भारत में दस सुपर स्पेशलिस्ट हैं उनमें एक नेत्र चिकित्सक जयपुर के डॉ. सोनू गोयल से मिलना तय हुआ। आकाश के पूरे परिवार सहित बच्ची को नेत्र चिकित्सक डॉ. गोयल से मिलवाया गया, उसकी देखभाल हुई और उसके बाद डॉ. गोयल ने उन्हें एक माह की मेडिसिन देकर महीने के बाद मिलने का समय दिया।

जब एक माह बाद लक्षिता को दिखाने के लिए आकाश का परिवार जयपुर गया तो तब संजय मंूदड़ा किसी कार्यवश साथ नहीं जा पाये। तब उनके साथ मित्र मण्डली थी। उस दौरान डॉ. सोनू गोयल अमेरिका जा चुके थे। हैरानी परेशानी इस बात की हुई कि जब डॉ. सोनू गोयल को अमेरिका जाना ही था तो उन्हें एक माह का समय देना ही क्यों था। खैर बात का पटाक्षेप हुआ कि स्टाफ की गलती से यह सब हुआ। और स्टाफ को इस गलती का खामियाजा ही नहीं भुगतना पड़ा बल्कि डॉ. सोनू ने भी इस गलती को महसूस किया।

अमेरिका से वापिस लौटने के बाद लक्षिता को जब पुन: डॉ. सोनू गोयल को दिखाया गया तो उन्होंने लक्षिता के इलाज करने का पुख्ता आश्वासन दिया. लक्षिता का डॉक्टर ने चैकअप किया और एक माह की मेडिसन देकर महीने बाद पुन: दिखाने के लिए कहा। महीने के बाद इलाज चला। 2 ऑपरेट हुए। ऑपरेशन सफल हुए और जब लक्षिता ने अपनी आंखें खोली, तब के समय का नजारा ही देखने वाला था। लक्षिता की आंखें मां को देख रही थीं और मां सीमा लक्षिता की आंखें देख रही थीं। दोनों को देखकर आकाश की आंखों मेंं खुशी के जो आंसू बह रहे थे, उसमें संजय मूंदड़ा व उनकी मित्र मंडली भी इतनी इमोशनल हुई कि उनकी भी आंखों से आंसुओं की गंगा बहने लगी। खुशी के आंसुओं के बाद मां सीमा भी खिलखिला उठी और उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही ना रहा और वहां सभी खुशी मेंं झूुम उठे। बच्ची लक्षिता अब सत्तर प्रतिशत देख सकती है और डॉ. सोनू का विश्वास है कि बाकी तीस प्रतिशत आंखों की रोशन लाने के वे भरसक प्रयास करेंगे। बच्ची का लंबा इलाज चलेगा। बच्ची को दिखाने के लिए परिजनों को हर माह जयपुर आना होगा। इधर संजय मूंदड़ा परिवार ने प्रण लिया है कि वे बच्ची का इलाज ताजिंदगी करवाएंगे। जब तक होगा, बीमारी का खर्चा वे ही उठाएंगे। श्री मूंदड़ा का कहना है कि इस नश्वर शरीर का कोई पता नहीं चलता। मैं रहूं या न रहंू मेरा परिवार अपने प्रण से पीछे नहीं हटेगा।

जो कर रहे हैं मानव धर्म का पालन…

आकाश, सीमा परिवार के जो हमदर्द बने हुए हंै, उनमें गंगानगर के प्रेम भाटिया, प्रमोद चलाना एवं जयपुर अनूप खंडेलवाल हैं। इन्हीं लोगों के स्नेह व सहायता के कारण आकाश व सीमा का धैर्य बना रहा और उनका उत्साह भी जागा।

संजय मूंदड़ा की तमन्ना है…..

इंसानियत परस्त संजय मूंदड़ा को पूर्ण विश्वास है कि लक्षिता की नेत्र ज्योति पूर्णतया लौट आएगी और वह अपने जीवन का पूरा आनंद उठाने में समर्थ होगी. साथ ही संजय मूंदड़ा की तमन्ना है कि शत प्रतिशत आंखों की रोशनी मिलने के पश्चात लक्षिता अपने जीवन में भ्रष्टाचार, अपराध, अन्याय, अत्याचार उत्पीडऩ मुक्त एक खुशहाल गंगानगर को देखेगी ताकि उसकी नेत्र ज्योति एक अपराध मुक्त शुचितापूर्ण समाज कीअवधारणा बने।

मानवीय मूल्यों का अन्तद्र्वन्द्व…

एक श्रमिक परिवार की जन्मांध बच्ची को नेत्र ज्योति दिलाने में संजय मूंदड़ा द्वारा उठाए गए कदम से नेत्र विशेषज्ञ भी विचलित होने से नहीं बच सके। वे भी अपने पेशे की पवित्रता का बोध होने से नहीं बच सके। उनकी आत्मा में भी प्रकाश हुआ। साथ ही शायद उन्हें यह भी अहसास हुआ कि भारत में चिकित्सक को भगवान का दर्जा मिला हुआ है और चिकित्सक बंधु रोगी के उपचार के प्रति समर्पित रहते आए हैं। शायद उन्होंने सोचा कि मैं भी क्यों नहीं पुण्य की गंगा में हाथ धोकर अपने मानव जीवन को पवित्र कर लूं। यह चिकित्सक हैं लक्षिता का इलाज करने वाले डॉ. सोनू गोयल। बच्ची की जांच के बाद उपचार के लिए हामी भर ली और साथ ही कहा कि हालांकि बहुत विलंब हो चुका है फिर भी मुझे पूरी उम्मीद है कि इस बच्ची का जीवन उजाले से भर दूंगा। संजय मूंदड़ा ने पूरा खर्चा पूछा तो डॉ.गोयल ने लगभग दो ढाई लाख बताया। मंूदड़ा ने कहा कि पैसे की कोई बात नहीं, ज्यादा भी लगेगा तो मैं वह भी लगाऊंगा। डॉ. गोयल इस बात से बहुत प्रभावित हुए और उनमें मन में माववता हिलारें मारने लगी। और उन्होंने कहा कि आप जब इस बच्ची के लिए इतना कुछ कर रहे हैं तो मैं भी पीछे नहीं हटूंगा। इसके ऑप्रेशन का खर्चा मैं नहीं लूंगा। अन्य दवा आदि का व्यय आप करें ताकि मैं अपने पेशे को गौरवान्वित कर सकूं। अंतत: मानवीय मूल्यों के इस अंतद्र्वद्व में संजय मंूदड़ा व डॉ. सोनू गोयल में सहमति बन ही गई।

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